आर्थिक स्थिति कैसी रहेगी। हर एक जातक की यह इच्छा होती है कि उसके पास अच्छा रुपया-पैसा हो, अच्छा काम हो आदि।जब धन की स्थिति अच्छी होगी तो रोजगार भी स्वतः ही मिल जाता है क्योंकि धनः तो रोजगार से ही आएगा।। कुंडली का दूसरा भाव रुपये-पैसे का तो ग्यारहवा भाव आय/लाभ मतलब धन आने का भाव है कि धन तो है लेकिन आएगा कहा से इसके लिए ग्यारहवा भाव जिम्मेदार है।आर्थिक स्थिति( रुपये-पैसे की स्थिति) के लिए दूसरा भाव और भावेश जो कि धन के भंडार का है और ग्यारहवा भाव जो कि धनः वृद्धि, धनः लाभ और धनः आने का है इन दोनों भावो और इसने स्वामियों के अच्छी स्थिति में होना, अच्छे सबंध बनाकर बैठे होना, कुंडली में बनने वाले राजयोग आदि से संबंध होना, दूसरे और ग्यारहवे भाव मे उच्च के ग्रहो का अनुकूल होकर बैठना या दूसरे/ ग्यारहवे भाव के स्वामी खुद उच्च राशिगत हो, केंद्र त्रिकोण में हो और एक साथ संबंध बनाकर बैठते हो तब यह जातक को रुपये-पैसे वाला इंसान बनाकर धनी बनाता है।। इसके अतिरिक्त दूसरे और ग्यारहवे भाव के स्वामी जितने ज्यादा शुभ स्थिति में बैठकर नवे, पाचवे भाव के स्वामियों से संबंध करेंगे उतना ही शक्तिशाली धन का स्तर रहेगा।जैसे दूसरे/ग्यारहवे भाव के स्वामी एक साथ नवे भाव मे बैठ जाये या नवमेश के साथ किसी भी केंद्र त्रिकोण, दूसरे भाव मे या ग्यारहवे भाव मे संबंध बनाकर बेठ जाए निश्चित ही ऐसा जातक निरंतर आर्थिक उन्नति, और लाभ में उन्नति करके लखपति/ करोड़पति तक बन जाते है।। एक सबसे महत्वपूर्ण बात यहाँ यह होती है यदि किसी भी जातक का दूसरा भाव बलवान है और ग्यारहवा भाव बहुत कमजोर है तब धन तो रहेगा, लेकिन धन आने का कोई व्यवस्थित स्थाई रूप से साधन नही होगा, क्योंकि ग्यारहवा भाव आय का है जब यह कमजोर होता है तब आय के निश्चित स्थाई रूप से साधन नही मिल पाते, ऐसे जातक जितना काम करते है उसके अनुसार धन की व्यवस्था इनके पास रहती है इसके विपरीत जब ग्यारहवा भाव बहुत बलवान और शुभ स्थिति में हो तब आय आने के स्थाई रूप से निश्चित रास्ते होंगे जैसे 1लाख हर माह आय आनी है तो आनी ही है, दूसरा भाव यह निर्धारित करता है कि धन है लेकिन ग्यारहवा भाव यह बताएगा धन का लाभ कितना रहेगा और धन ककिं रास्तो से आएगा।इस कारण देखा जाए तो दूसरे भाव से भी ज्यादा यहाँ ग्यारहवा भाव आर्थिक लाभ के लिए बहुत महत्तपूर्ण है लेकिन धन लाभ तब ही होगा जब दूसरा भाव भी सक्रिय हो।अब कुछ उदाहरणों से समझे। #उदाहरण_अनुसार1:- वृष लग्न में दूसरे भाव धन का स्वामी बुध होता है साथ ही ग्यारहवे भाव का स्वामी गुरु होता है, अब यदि वृष लग्न में बुध और गुरु एक साथ संबंध बनाकर केंद्र त्रिकोण या दूसरे/ग्यारहवे भाव मे बैठेंगे तब यह जातक को आर्थिक रूप से अच्छा स्तर देंगे, अच्छा वृष लग्न में शनि नवमेश-दशमेश होकर योगकारक होने से सफलता देने वाला ग्रह है यदि यहाँ गुरु बुध के साथ शनि भी संबंध बना ले और इन तीनो में कोई भी ग्रह अस्त न हो और अशुभ योग में न हो तब यह स्थिति बहुत अमीर, जैसे कि करोड़पति तक जातक को निश्चित बनाएगी।। #उदाहरण_अनुसार2:- कन्या लग्न में शुक्र दूसरे भाव का स्वामी होता है साथ ही शुक्र यहाँ नवे भाव का स्वामी भी है और चन्द्र ग्यारहवे भाव का स्वामी होता है अब ऐसी स्थिति में शुक्र चन्द्र दोनो एक साथ नवे भाव मे युति करके बैठ जाये तब यह महालक्ष्मी की कृपा जातक पर होगी क्योंकि धन स्वामी शुक्र/ आय-लाभ स्वामी चन्द्र दोनो ग्रहो का एक साथ नवे भाव मे वृष राशि मे बैठना परम् धन वृद्धि योग है क्योंकि नवे भाव वृष राशि मे शुक्र यहाँ स्वराशि का है और चन्द्र इस वर्ष राशि मे उच्च का होता है।यह बहुत ताकतवर धन की स्थिति होगी ऐसा जातक काफी बड़ा धनवान व्यक्ति रहेगा, कर्मेश बुध भी बलि तब कहना ही क्या?, क्योंकि बुध यहाँ कार्य छेत्र स्वामी होता है।। इस तरह से दूसरे और ग्यारहवे भाव की स्थिति और इन दोनों भाव/ भावेशों के संबंध शुभ भावेशों से बहुत कामयाबी आर्थिक रूप से देते है ग्यारहवा भाव या ऐसी स्थिति में जितना ज्यादा से ज्यादा बलवान होगा, उतने ही मजबूत धन, वृद्धि और उन्नति रहेगी।ग्यारहवा भाव बलवान होने पर यह जातक को लाभ देने पर मजबूर होता है कहने का मतलब है ग्यारहवे भाव पर ज्यादा से ज्यादा बलवान ग्रहो का प्रभाव जातक को कार्य छेत्र में लाभ और उन्नति के रास्ते देगा चाहे जातक मेहनत न करे फिर भी परिस्थिति ऐसी होगी कि जातक थोड़ी ही अपने कार्य छेत्र जो भी होगा उसमे थोड़ी ही मेहनत करेगा और बड़ी सफलता और लाभ को प्राप्त करेगा क्योंकि ग्यारहवा भाव बलवान होने पर लाभ देने के लिए मजबूर होता है।इस तरह यदि दूसरे और ग्यारहवे भाव की स्थिति कुंडली मे अच्छी स्थिति में है तो आर्थिक पक्ष काफी अच्छा रहता है। Get link Facebook X Pinterest Email Other Apps February 12, 2020 Read more