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भाग्येश की महादशा। भाग्येश मतलब भाग्य का स्वामी।कुंडली में नवें भाव के स्वामी को भाग्येश और नवम भाव को भाग्य कहते है।भाग्येश की महादशा या अन्तर्दशा का जीवन में आना बहुत ही शुभ और सोभाग्यशाली बात होती है क्योंकि भाग्येश की कुंडली में एक ऐसा ग्रह होता है जिसकी जानकारी हर जातक चाहता है जैसे सबसे पहला ही सामान्य प्रश्न होता मेरा या अमुक जातक का भाग्य कैसा है?. जिन भी जातको को शुभ और बली भाग्येश की दशा जीवन में मिल जाती है निश्चित ही ऐसे जातको के जीवन में सूर्य के प्रकाश की तरह जीवन में प्रकाश आ जाता है, दुर्भाग्य दूर होकर सौभाग्य की वृद्धि होने लगती है, शुभ और बली भाग्येश महादशा या अन्तर्दशा कुंडली के सभी दोषो को शांत कर जीवन में सफलता और आगे बढ़ने के रास्ते खोलती है।रोजगार, नोकरी, व्यापार, शादी होने, कोई अच्छा काम और उसमे सफलता के लिए साथ ही अन्य तरह से हर से भाग्येश की महादशा या अन्तर्दशा का जीवन में आ जाना या आना सभी तरह के शुभ कार्य जातक के जीवन में होने लगते है भाग्य का कारक गुरु होता है जिस कारक भाग्य और भाग्येश के आधे शुभ फलो की जिम्मेदारी गुरु के भाग्य भाव के कारक होने से गुरु की होती है।इसीकारण भाग्येश के साथ गुरु का भी बली होना जरूरी होता है। भाग्येश अन्य तरह से कब ज्यादस शुभ फल देता है?? भाग्य का स्वामी खुद सबसे बड़ा राजयोग देने वाला और सभी भावो के स्वामियों का एक तरह से राजा होता है कहने का मतलब है शतरंज के खेल में बजीर होता है जैसे शतरंज के खेल में बजीर के हाथ में हर बाजी होती है मतलब बजीर कोई भी चाल चल सकता है(घोड़े की चाल छोड़कर)वेसे ही भाग्य का स्वामी कुंडली लग्नेश, पंचमेश, दशमेश, धन, लाभ भावो के फल देने में भी अकेला सक्षम होता है।भाग्येश का संबंध जब इन्ही लग्नेश(लग्न के स्वामी)चतुर्थेश(चौथे भाव के स्वामी), पंचमेश(पंचम भाव के स्वामी), सप्तमेश(सप्तम भाव के स्वामी), दशमेश(दध्मः भाव के स्वामी), धनेश(दूसरे भाव के स्वामी), लाभेश(ग्यारहवे भाव के स्वामी) के साथ हो जाने से बहुत शक्तिशाली और शुभ फल भाग्येश की दशा देती है सफलता, नाम, कारोबार/नोकरी में उन्नति-सफलता, सुख-सौभाग्य की वृद्धि होती है जिसे कहते है किस्मत जातक की दासी है।। इसके विपरीत स्थिति में अगर भाग्येश कमजोर होता है, नीच राशि में होता है, पीड़ित होता है, अशुभ योग बनाए होता है या अस्त होता है तब भाग्येश की दशा अशुभ फल, जैसे असफलताएँ, सौभाग्य दुर्भाग्य में बदल जाना, भाग्य का साथ न मिलना आदि जैसे अशुभ फल मिलते है।। #उदाहरण_अनुसार:- वृश्चिक लग्न की कुंडली में चंद्रमा भाग्येश(नवे भाव का स्वामी)होता है।जब बलवान और शुभ चंद्रमा की दशा-अन्तर्दशा वृश्चिक लग्न के जातको पर आएगी तब जातक को कई तरह के शुभ फल मिलने लगेंगे जैसे जातक पढाई कर रहा हो तब उसमे अच्छी सफलता, नोकरी के लिए प्रयास कर रहा हो तब उसमे सफलता नोकरी लग जाना, व्यापार में हो तब व्यापारिक सफलता, मतलब जातक जिन कार्यो को पूरा करना चाहता है वह भाग्येश की दशा करा देती है साथ ही भाग्येश जिन भी शुभ भाव पतियो जैसे केन्द्र्(1,4,7,10) त्रिकोण(5,9)(2,11)भावेश या भाव का भाग्येश से सम्बन्ध होने से इन भावो के भी शुभ फल मिलते है।शुभ और बली भाग्येश की महादशा-अन्तर्दशा जीवन को अच्छा बनाकर जातक के लिए सभी तरह से शुभ होती है।। भाग्येश का विचार नवमांश कुंडली में जरूरी होता है क्योंकि भाग्य की विशेष वर्ग कुण्डलु नवमांश कुंडली है भाग्येश की स्थिति लग्न कुंडली के साथ नवमांश कुंडली में भी बली होना जैसे भाग्येश वर्गोत्तम हो(लग्न और नवमांश कुंडली में एक ही राशि में) अपनी उच्च राशि या स्वराशि में हो, नवमांश कुंडली में शुभ योग बनाता हो तब दोहरे(डबल)शुभ फल भाग्येश की दशा देती है।इस तरह से भाग्येश की महादशा या अन्तर्दशा बेहद जातक/जातिकाओ के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती है।
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