एकादशेश(लाभेश) की दशा। जन्मकुंडली का ग्यारहवाँ भाव लाभ, उन्नति, वृद्धि एक तरह से हर तरह से शुभ फल देने वाला होता है लाभेश के शुभ होने पर लाभेश की दशा जीवन में धन लाभ, अन्य तरह से मिलने वाले लाभ को देती है क्योंकि यह भाव और भावेश दोनों ही लाभ सूचक है।यदि जातक व्यापार करता है तो व्यापार में शुभ और बलवान लाभेश की महादशा या अन्तर्दशा व्यापार में लाभ और वृद्धि के नए रास्ते खोल देती है क्योंकि इस भाव और भावक स्वामी का काम ही है व्यापार में या किसी भी उस चीज में लाभ देना जिस भी भाव का सम्बन्ध इस भाव या भावेश से होता है।। बलवान लग्नेश और लाभेश का सम्बन्ध जीवन को सुखी बनाने में सहयोग करता है, दूसरे भाव या भावेश का सम्बन्ध लाभेश से होने पर धन की वृद्धि करता है इसी तरह जिस भी भाव/भावेश का शुभ सम्बन्ध ग्यारहवे भाव या इस भाव के स्वामी से होता है उस भाव के शुभ फलो में वृद्धि हो जाती है और सम्बन्ध अशुभ हो तब अशुभ फल में वृद्धि होगी जैसे छठे भाव का स्वामी अशुभ स्थिति में हो तब बिघ्न-बाधाओं, कर्जा आदि की वृद्धि होगी।। इसके विपरीत सम्बन्ध शुभ होने पर शुभ फल में वृद्धि होगी।जैसे दशमेश का सम्बन्ध लाभेश(एकादशेश) से होगा तब यह नोकरी/व्यापार या जो भी कार्य छेत्र होगा उसमे उन्नति उस काम से लाभ ही देगा क्योंकि यहाँ कार्य छेत्र का सम्बन्ध लाभेश से जुड़ गया है।ग्यारहवे भाव का सम्बन्ध कुंडली में बनने वाले राजयोग से होने पर ऐसे लाभेश की दशा बहुत शुभ फल देती है क्योंकि राजयोग से सम्बन्ध बनने पर लाभेश राजयोग के शुभ फलो में वृद्धि करेगा, राजयोग का ज्यादा लाभ मिलेगा साथ ही राजयोग के शुभ फलो में वृद्धि होगी।एक तरह से यही ग्यारहवा भाव होता है जो हर स्थिति में (अशुभ न हो तब जैसे; अस्त, पीड़ित, नीच आदि) लाभ और सुखद फल देने में सक्षम होता है शुभ लाभेश की दशा किसी राजयोग से कम नही होती।लाभ के स्वामी की स्थिति नवमांश कुंडली में भी बली हो जैसे लाभेश वर्गोत्तम हो, उच्च हो गया हो आदि तरह से बली हो तब इसकी दशा दोहरा फायदा देने वाली जायेगी।व्यापारियो, नोकरी करने वाले जातक/जातिकाओ के लिए लाभेश की दशा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यही दशा होती है जो लाभ और आय में वृद्धि कराती है।वृद्धि कराने के लिए लाभेश बली जरूर होना चाहिए।शेयर मार्केट में लाभ और शेयर बाजार में सफलता के लिए लाभेश और लाभ भाव दोनों का अनुकूल होना जरूरी है ऐसी स्थिति में शेयर मार्केट योग कुंडली में होने पर लाभेश या लाभ भाव में बैठे ग्रह की दशा शेयर बाजार से लाभ कराती हैइस तरह से लाभ भाव की दशा शुभ परिणाम देने वाली एक महत्वपूर्ण दशा होती है।


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भाग्येश की महादशा। भाग्येश मतलब भाग्य का स्वामी।कुंडली में नवें भाव के स्वामी को भाग्येश और नवम भाव को भाग्य कहते है।भाग्येश की महादशा या अन्तर्दशा का जीवन में आना बहुत ही शुभ और सोभाग्यशाली बात होती है क्योंकि भाग्येश की कुंडली में एक ऐसा ग्रह होता है जिसकी जानकारी हर जातक चाहता है जैसे सबसे पहला ही सामान्य प्रश्न होता मेरा या अमुक जातक का भाग्य कैसा है?. जिन भी जातको को शुभ और बली भाग्येश की दशा जीवन में मिल जाती है निश्चित ही ऐसे जातको के जीवन में सूर्य के प्रकाश की तरह जीवन में प्रकाश आ जाता है, दुर्भाग्य दूर होकर सौभाग्य की वृद्धि होने लगती है, शुभ और बली भाग्येश महादशा या अन्तर्दशा कुंडली के सभी दोषो को शांत कर जीवन में सफलता और आगे बढ़ने के रास्ते खोलती है।रोजगार, नोकरी, व्यापार, शादी होने, कोई अच्छा काम और उसमे सफलता के लिए साथ ही अन्य तरह से हर से भाग्येश की महादशा या अन्तर्दशा का जीवन में आ जाना या आना सभी तरह के शुभ कार्य जातक के जीवन में होने लगते है भाग्य का कारक गुरु होता है जिस कारक भाग्य और भाग्येश के आधे शुभ फलो की जिम्मेदारी गुरु के भाग्य भाव के कारक होने से गुरु की होती है।इसीकारण भाग्येश के साथ गुरु का भी बली होना जरूरी होता है। भाग्येश अन्य तरह से कब ज्यादस शुभ फल देता है?? भाग्य का स्वामी खुद सबसे बड़ा राजयोग देने वाला और सभी भावो के स्वामियों का एक तरह से राजा होता है कहने का मतलब है शतरंज के खेल में बजीर होता है जैसे शतरंज के खेल में बजीर के हाथ में हर बाजी होती है मतलब बजीर कोई भी चाल चल सकता है(घोड़े की चाल छोड़कर)वेसे ही भाग्य का स्वामी कुंडली लग्नेश, पंचमेश, दशमेश, धन, लाभ भावो के फल देने में भी अकेला सक्षम होता है।भाग्येश का संबंध जब इन्ही लग्नेश(लग्न के स्वामी)चतुर्थेश(चौथे भाव के स्वामी), पंचमेश(पंचम भाव के स्वामी), सप्तमेश(सप्तम भाव के स्वामी), दशमेश(दध्मः भाव के स्वामी), धनेश(दूसरे भाव के स्वामी), लाभेश(ग्यारहवे भाव के स्वामी) के साथ हो जाने से बहुत शक्तिशाली और शुभ फल भाग्येश की दशा देती है सफलता, नाम, कारोबार/नोकरी में उन्नति-सफलता, सुख-सौभाग्य की वृद्धि होती है जिसे कहते है किस्मत जातक की दासी है।। इसके विपरीत स्थिति में अगर भाग्येश कमजोर होता है, नीच राशि में होता है, पीड़ित होता है, अशुभ योग बनाए होता है या अस्त होता है तब भाग्येश की दशा अशुभ फल, जैसे असफलताएँ, सौभाग्य दुर्भाग्य में बदल जाना, भाग्य का साथ न मिलना आदि जैसे अशुभ फल मिलते है।। #उदाहरण_अनुसार:- वृश्चिक लग्न की कुंडली में चंद्रमा भाग्येश(नवे भाव का स्वामी)होता है।जब बलवान और शुभ चंद्रमा की दशा-अन्तर्दशा वृश्चिक लग्न के जातको पर आएगी तब जातक को कई तरह के शुभ फल मिलने लगेंगे जैसे जातक पढाई कर रहा हो तब उसमे अच्छी सफलता, नोकरी के लिए प्रयास कर रहा हो तब उसमे सफलता नोकरी लग जाना, व्यापार में हो तब व्यापारिक सफलता, मतलब जातक जिन कार्यो को पूरा करना चाहता है वह भाग्येश की दशा करा देती है साथ ही भाग्येश जिन भी शुभ भाव पतियो जैसे केन्द्र्(1,4,7,10) त्रिकोण(5,9)(2,11)भावेश या भाव का भाग्येश से सम्बन्ध होने से इन भावो के भी शुभ फल मिलते है।शुभ और बली भाग्येश की महादशा-अन्तर्दशा जीवन को अच्छा बनाकर जातक के लिए सभी तरह से शुभ होती है।। भाग्येश का विचार नवमांश कुंडली में जरूरी होता है क्योंकि भाग्य की विशेष वर्ग कुण्डलु नवमांश कुंडली है भाग्येश की स्थिति लग्न कुंडली के साथ नवमांश कुंडली में भी बली होना जैसे भाग्येश वर्गोत्तम हो(लग्न और नवमांश कुंडली में एक ही राशि में) अपनी उच्च राशि या स्वराशि में हो, नवमांश कुंडली में शुभ योग बनाता हो तब दोहरे(डबल)शुभ फल भाग्येश की दशा देती है।इस तरह से भाग्येश की महादशा या अन्तर्दशा बेहद जातक/जातिकाओ के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती है।

||#संधि_में_बैठे_ग्रहो_के_फल|| जिस तरह से लग्न संधि में होता है उसी तरह से ग्रह भी संधि में आ जाते है जिनकी जांच गहराई से करने पर ही उनके सही फल निकल सकते है।। संधि में ग्रह कैसे होता है?? जब कोई भी ग्रह किसी राशि पर 0अंश 2अंश तक हो या 29 से 30 तक हो तब ऐसे ग्रह संधि में होते है मतलब दोनो भावों का प्रभाव लिए हुए होते है।अब ग्रह यदि 1अंश का है इसका अर्थ है ग्रह अभी पिछली राशि/भाव से निकलकर अगली राशि/भाव मे आया ही है और जब ग्रह 29या 30अंश पर होता है इसमें भी यदि 30अंश पर हो तब इसका अर्थ होता है ग्रह जिस राशि/भाव मे है उसे छोडकर अगले भाव/राशि मे जा रहा है हलाकि ऐसे ग्रह की चलित कुंडली मे भाव स्थिति से सही अंदाजा उसके भाव का लगाया जाता है लेकिन कभी कभी ऐसा होता है कि ग्रह 29 या 30अंश पर होने पर भी चलित कुंडली मे उसी भाव और राशि मे है जिसमे की लग्न कुंडली मे है।तब ऐसा ग्रह या ऐसे ग्रह संधि में होते है मतलब अपना प्रभाव दोनो भावो पर डालते है।ऐसे केस में 1 या 2अंश के ग्रह का फल उसी भाव राशि अनुसार होगा जिसमें वह ग्रह है क्योंकि 1 या 2अंश का ग्रह अपना पिछला भाव या राशि को छोड़ चुका है लेकिन जो ग्रह 29 या 30अंश का है और चलित में भी बिल्कुल लग्न कुंडली जैसी स्थिति में है वह जिस भाव मे है उसके भी और अगले भाव के भी फल देने चालू कर देगा मतलब मिले झूले फल देगा।जैसे कि;- शनि की साढ़ेसाती होती है शनि होता एक ही भाव राशि मे है लेकिन उसकी साढ़ेसाती का प्रभाव शनि से पिछले भाव/राशि पर भी राहत है और अगले भाव और राशि पर भी राहता है माना जातक की राशि धनु है तो शनि जब धनु राशि पर होगा तो धनु से पिछली राशि वृश्चिक पर भी साढ़ेसाती देगा और धनु से अगली राशि मकर पर भी साढ़ेसाती रहेगी और जिस जन्म राशि पर शनि है उस पर भी साढ़ेसाती धनु पर रहेगी तो शनि जहाँ बैठा है उससे आगे और पीछे भाव/राशि कर भी फल दे रहा है इस तरह से ही जो ग्रह भाव संधि में होते है वह मिलाझुला फल करते है उसमे भी जो ग्रह बहुत तेज गति से चलते है जैसे बुध चन्द्र इनका प्रभाव विशेष होता है और गुरु शनि राहु केतु यह धीमी गति से चलते है इस कारण भाव संधि में यह ग्रह होंगे तो इनका प्रभाव दोनो भावो पर आएगा। #जैसे;- जैसे कर्क लग्न कि कुंडली मे सूर्य दसवे भाव मेष राशि मे होगा जो कि सूर्य की उच्च राशि है यदि यहाँ सूर्य 29 या 30अंश का है तो सूर्य यहाँ भाव संधि में आ जायेगा मतलब सूर्य ग्यारहवे भाव पर भी अपना प्रभाव दिखा सकता है तो दसवा भाव नोकरी/कार्य छेत्र का है सूर्य सरकार का कारक है तो ऐसे में दसवे भाव मे उच्च सूर्य होने से यही दिख रहा है कि जातक की किसी अच्छे पद पर सरकारी नोकरी सूर्य के कारण लगेगी क्योंकि दसवे भाव मे सूर्य है लेकिन सूर्य भाव संधि में है 29 या 30अंश का होकर तो ऐसा सूर्य हो सकता है सरकारी नोकरी या सूर्य के कारण नोकरी न मिल सके क्योंकि सूर्य ग्यारहवे भाव के साथ भाव संधि में है और ग्यारहवे भाव मे 29 या 30अंश का होकर ग्यारहवे भाव मे जाने के लिए आतुर है तो ऐसी स्थिति में सूर्य का प्रभाव दसवे भाव पर नाम मात्र को होगा जो कि कुछ खास असर नही देगा जबकि सूर्य बैठा दिख रहा है दसवे भाव मे ही।इसी तरह यही सूर्य की स्थिति बिल्कुल 9वे भाव मे बैठने पर होती और दसवे भाव को देखने पर पता चले कि सरकारी नोकरी योग नही है लेकिन जातक को मिल जाये तो यह सूर्य के नवे भाव मे 29 या 30अंश पर बैठने से सूर्य 10वे भाव के साथ भाव संधि में आ गया है जिस कारण उसने अपना प्रभाव दसवे भाव पर दिखाया।यह स्थिति बिल्कुल ऐसे ही है जैसे शाम को आफिस की छुट्टी के समय व्यक्ति घर जाने के लिए सोचता और यह सोचने लगता है क्या कुछ घर का या घर या घर के सदस्यों के लिए लेकर तो नही जाना।जबकि जातक अभी है ऑफिस में ही।ऐसी स्थिति में एक से ज्यादा ग्रह भी भाव संधि में हो जाते है तो जो भी ग्रह भाव संधि में होगा उसका फल सटीक उस ग्रह के फल जातक को किस तरह प्रभावित कर रहे है उसी के अनुसार होंगे।भाव संधि वाले ग्रहो के रत्न पहनते समय बहुत ध्यान रखा जाता है या रखना चाहिए क्योंकि हो सकता है आपको ग्रह लग्न(प्रथम)भाव मे बैठा दिख रहा है और यही ग्रह 12वे भाव के साथ भाव संधि में है तो ऐसे ग्रह के रत्न 12वे घर के फलो पर अपना प्रभाव डालेंगे जो कि शुभ नही क्योंकि 12वा भाव खर्चे का है।इसी तरह कोई ग्रह 12वे भाव मे है और कुंडली के लिए ऐसा ग्रह योगकारक/कारक या शुभ होकर शुभ फल देने वाला है लेकिन 12वे भाव मे होकर लग्न भाव के साथ संधि में हो तब ऐसे ग्रह के 12वे भाव मे बैठने पर भी उसका रत्न पहनना शुभ हो सकता है यदि चलित कुंडली मे भी ऐसा ग्रह लग्न(प्रथम) भाव मे आ गया हो तो यह सबसे बढ़िया फल देने की स्थिति होगी तो भाव संधि में बैठे ग्रहो के फल की सटीक भविष्यवाणी उनके भाव संधि किस तरह से है पर निर्भर करते है इसी तरह कोई लग्न भाव संधि में हो तो उस लग्न कुंडली के फलो की जांच बारीकी से करने पर उसके सही फलो का पता चलता है।