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आर्थिक स्थिति कैसी रहेगी। हर एक जातक की यह इच्छा होती है कि उसके पास अच्छा रुपया-पैसा हो, अच्छा काम हो आदि।जब धन की स्थिति अच्छी होगी तो रोजगार भी स्वतः ही मिल जाता है क्योंकि धनः तो रोजगार से ही आएगा।। कुंडली का दूसरा भाव रुपये-पैसे का तो ग्यारहवा भाव आय/लाभ मतलब धन आने का भाव है कि धन तो है लेकिन आएगा कहा से इसके लिए ग्यारहवा भाव जिम्मेदार है।आर्थिक स्थिति( रुपये-पैसे की स्थिति) के लिए दूसरा भाव और भावेश जो कि धन के भंडार का है और ग्यारहवा भाव जो कि धनः वृद्धि, धनः लाभ और धनः आने का है इन दोनों भावो और इसने स्वामियों के अच्छी स्थिति में होना, अच्छे सबंध बनाकर बैठे होना, कुंडली में बनने वाले राजयोग आदि से संबंध होना, दूसरे और ग्यारहवे भाव मे उच्च के ग्रहो का अनुकूल होकर बैठना या दूसरे/ ग्यारहवे भाव के स्वामी खुद उच्च राशिगत हो, केंद्र त्रिकोण में हो और एक साथ संबंध बनाकर बैठते हो तब यह जातक को रुपये-पैसे वाला इंसान बनाकर धनी बनाता है।। इसके अतिरिक्त दूसरे और ग्यारहवे भाव के स्वामी जितने ज्यादा शुभ स्थिति में बैठकर नवे, पाचवे भाव के स्वामियों से संबंध करेंगे उतना ही शक्तिशाली धन का स्तर रहेगा।जैसे दूसरे/ग्यारहवे भाव के स्वामी एक साथ नवे भाव मे बैठ जाये या नवमेश के साथ किसी भी केंद्र त्रिकोण, दूसरे भाव मे या ग्यारहवे भाव मे संबंध बनाकर बेठ जाए निश्चित ही ऐसा जातक निरंतर आर्थिक उन्नति, और लाभ में उन्नति करके लखपति/ करोड़पति तक बन जाते है।। एक सबसे महत्वपूर्ण बात यहाँ यह होती है यदि किसी भी जातक का दूसरा भाव बलवान है और ग्यारहवा भाव बहुत कमजोर है तब धन तो रहेगा, लेकिन धन आने का कोई व्यवस्थित स्थाई रूप से साधन नही होगा, क्योंकि ग्यारहवा भाव आय का है जब यह कमजोर होता है तब आय के निश्चित स्थाई रूप से साधन नही मिल पाते, ऐसे जातक जितना काम करते है उसके अनुसार धन की व्यवस्था इनके पास रहती है इसके विपरीत जब ग्यारहवा भाव बहुत बलवान और शुभ स्थिति में हो तब आय आने के स्थाई रूप से निश्चित रास्ते होंगे जैसे 1लाख हर माह आय आनी है तो आनी ही है, दूसरा भाव यह निर्धारित करता है कि धन है लेकिन ग्यारहवा भाव यह बताएगा धन का लाभ कितना रहेगा और धन ककिं रास्तो से आएगा।इस कारण देखा जाए तो दूसरे भाव से भी ज्यादा यहाँ ग्यारहवा भाव आर्थिक लाभ के लिए बहुत महत्तपूर्ण है लेकिन धन लाभ तब ही होगा जब दूसरा भाव भी सक्रिय हो।अब कुछ उदाहरणों से समझे। #उदाहरण_अनुसार1:- वृष लग्न में दूसरे भाव धन का स्वामी बुध होता है साथ ही ग्यारहवे भाव का स्वामी गुरु होता है, अब यदि वृष लग्न में बुध और गुरु एक साथ संबंध बनाकर केंद्र त्रिकोण या दूसरे/ग्यारहवे भाव मे बैठेंगे तब यह जातक को आर्थिक रूप से अच्छा स्तर देंगे, अच्छा वृष लग्न में शनि नवमेश-दशमेश होकर योगकारक होने से सफलता देने वाला ग्रह है यदि यहाँ गुरु बुध के साथ शनि भी संबंध बना ले और इन तीनो में कोई भी ग्रह अस्त न हो और अशुभ योग में न हो तब यह स्थिति बहुत अमीर, जैसे कि करोड़पति तक जातक को निश्चित बनाएगी।। #उदाहरण_अनुसार2:- कन्या लग्न में शुक्र दूसरे भाव का स्वामी होता है साथ ही शुक्र यहाँ नवे भाव का स्वामी भी है और चन्द्र ग्यारहवे भाव का स्वामी होता है अब ऐसी स्थिति में शुक्र चन्द्र दोनो एक साथ नवे भाव मे युति करके बैठ जाये तब यह महालक्ष्मी की कृपा जातक पर होगी क्योंकि धन स्वामी शुक्र/ आय-लाभ स्वामी चन्द्र दोनो ग्रहो का एक साथ नवे भाव मे वृष राशि मे बैठना परम् धन वृद्धि योग है क्योंकि नवे भाव वृष राशि मे शुक्र यहाँ स्वराशि का है और चन्द्र इस वर्ष राशि मे उच्च का होता है।यह बहुत ताकतवर धन की स्थिति होगी ऐसा जातक काफी बड़ा धनवान व्यक्ति रहेगा, कर्मेश बुध भी बलि तब कहना ही क्या?, क्योंकि बुध यहाँ कार्य छेत्र स्वामी होता है।। इस तरह से दूसरे और ग्यारहवे भाव की स्थिति और इन दोनों भाव/ भावेशों के संबंध शुभ भावेशों से बहुत कामयाबी आर्थिक रूप से देते है ग्यारहवा भाव या ऐसी स्थिति में जितना ज्यादा से ज्यादा बलवान होगा, उतने ही मजबूत धन, वृद्धि और उन्नति रहेगी।ग्यारहवा भाव बलवान होने पर यह जातक को लाभ देने पर मजबूर होता है कहने का मतलब है ग्यारहवे भाव पर ज्यादा से ज्यादा बलवान ग्रहो का प्रभाव जातक को कार्य छेत्र में लाभ और उन्नति के रास्ते देगा चाहे जातक मेहनत न करे फिर भी परिस्थिति ऐसी होगी कि जातक थोड़ी ही अपने कार्य छेत्र जो भी होगा उसमे थोड़ी ही मेहनत करेगा और बड़ी सफलता और लाभ को प्राप्त करेगा क्योंकि ग्यारहवा भाव बलवान होने पर लाभ देने के लिए मजबूर होता है।इस तरह यदि दूसरे और ग्यारहवे भाव की स्थिति कुंडली मे अच्छी स्थिति में है तो आर्थिक पक्ष काफी अच्छा रहता है।

#जमीन_जायदाद_या_मकान_बनेगा_या_नही #और_कब?●● प्रॉपर्टी बनाना या अपने मकान की इच्छा हर इंसान की होती है।आज इसी विषय पर बात करेंगे मकान या जमीन जायदाद बनेगा या नही और बनेगा तो कब? जन्मकुण्डली का चौथा भाव और इसका स्वामी और प्रॉपर्टी, जमीन जायदाद का कारक मंगल इन सबसे जमीन जायदाद और मकान का विचार किया जाता है।जब चौथे भाव का स्वामी और चोथा भाव बलवान होकर शुभ ग्रहों या केंद्र त्रिकोण भाव स्वामियों के सब संबंध बनाता है साथ ही साथ मंगल का प्रभाव चौथे भाव या इस भाव के स्वामी पर पड़ता है तब ऐसे जातक अच्छा मकान सुख और प्रॉपर्टी सुख भोगते है।मकान सुख योग होने के साथ चौथे भाव के स्वामी का संबंध ग्यारहवे भाव और इस भाव के स्वामी से होना बड़े मकान या बड़ी प्रॉपर्टी म सुख देता है क्योंकि ग्यारहवा भाव लाभ और उन्नति का है इस कारण जिन भी जातको की कुंडली मे ग्यारहवे भाव से चौथे भाव/भावेश का संबंध अपने मकान का सुख भी देता है और आय के रास्ते भी ऐसे जातको के प्रॉपर्टी के द्वारा खुले होते है।शुभ चौथे भाव अब कुछ उदाहरणों से मकान या प्रॉपर्टी सुख को समझे:- #उदाहरण:- वृष लग्न में चतुर्थेश सूर्य होता है।अब सूर्य यहाँ पंचमेश बुध और सप्तमेश मंगल के साथ किसी भी केंद्र 1,4,7,10 या किसी भी त्रिकोण 5,9 में बैठा हो तब ऐसे जातक को अपने मकान का, जमीन-जायदाद का सुख मिलेगा और बनेगी भी, साथ ही इस ग्रह योग में ग्यारहवे भाव या इसके स्वामी का भी संबंध बन जाता है जो कि गुरु ग्रह छवि तब बहुत बड़ी मात्रा में मकान का अच्छा या ज्यादा मात्रा में जमीन -जायदाद का स्वामी ऐसा जातक बनता है।#जितने शुभ स्थिति में चतुर्थेश या मंगल सहित चोथे भाव मे ग्रह होंगे उतना ही जमीन जायदाद या मकान बनाने का सुख अच्छा बनता है। चोथे भाव या इसके स्वामी पर शुक्र बुध गुरु सूर्य मंगल का प्रभाव अच्छे स्तर के आलीशान मकान का सुख देता है।यहाँ शुक्र गुरु मंगल का चोथे भाव मे या चोथे भाव के स्वामी के साथ केंद्र त्रिकोण भाव मे बैठना मकान और प्रॉपर्टी सुख देने की और बनाने की खूब वृद्धि करता क्योंकि यह घर खुद मकान, प्रॉपर्टी का है।शनि राहु केतु चोथे भाव पर पुराने मकान या देर से जमीन जायदाद या मकान का सुख देता है,क्योंकि यह ग्रह देर से किसी भी सुख को देने वाले है इस स्थिति में यह ग्रह शुभ होने चाहिए। चोथे भाव या भावेश जा 6 भाव या भावेश से संबंध किराए मकान सुखबय कर्जा लेकर मकान को बनवाता है, चोथे भाव या भावेश का 8वे भाव से संबंध विवादित मकान या बहुत परेशानी के बाद मकान सुख मिलता है वह भी मकान सुख योग होने पर, चोथे भाव या भावेश का 12वे भाव या भावेश से 6,8,12भाव मे संबंध लम्बे समय के बाद मकान का सुख दे सकता है वह भी तब जब मकान सुख योग कुंडली के अंदर हो।। इसके अतिरिक्त जितने ज्यादा शुभ योग दसवे और चोथे भाव मे होंगे चतुर्थेश और मंगल बलवान और शुभ होकर शुभ योगो का चोथे भाव से संबंध निश्चित ही मकान की इच्छा को पूर्ण करता है।। #नोट:- चोथे भाव मे बैठे शुभ और बलवान ग्रह की दशा या चोथे भाव या भावेश की दशा या इस भाव स्वामी से सम्बंधित ग्रह की दशा में मकान/प्रॉपर्टी बनती या खरीदी जाती है।अशुभ यिग होने पर इंसान गलत मकान या प्रॉपर्टी खरीदकर नुकसान में भी जाता है इस कारण शुभ योग और शुभ दशा मकान की होने पर ही मकान या जमीन आदि खरीदने से वह सुख देती है।

|#शेयर_बाजार_काम_मे_सफलता_और_कैरियर| शेयर बाजार एक बड़ा और व्यापारिक छेत्र है।इस छेत्र में आर्थिक सफलता, रोजगार में सफलताए या शेयर की खरीदारी और बिक्री से धनः लाभ कमाना यह सब कुंडली मे इस छेत्र में सफलता के योग होने पर ही सम्भव होता है।अब बात करते है कैसे इस छेत्र में सफलता मिलती है? कुंडली का 5वा भाव और इस भाव का स्वामी साथ ही ग्यारहवा भाव जो कि लाभ का है शेयर बाजार में सफलता को निश्चित करता है, पंचमेश सहित ग्यारहवे भाव से ग्रहो में राजयोग बनने पर शेयर की खरीदारी और बिक्री करने पर जातक लाभ कमाता है।धन लाभ कमाने के लिए यदि दूसरे भाव का स्वामी जो कि धन का भाव है वह भी इसी 5वे और 11वे भाव के संबंध के बीच संबंध बना लेता है तब अपार इस छेत्र में आर्थिक सफलता मिलती है।पंचमेश, ग्यारहवे भाव के स्वामी साथ ही दूसरे भाव जो कि धनः का भाव है इनके स्वामी अशुभ हो तब योग होने पर भी नुकसान होगा या दूसरे/ग्यारहवे भाव के स्वामी 6,8,12वे भाव मे होंगे या अशुभ योग में होंगे तब भी नुकसान होगा।। #शेयर_बाजार में लाभ कब होगा? जब दूसरे ग्यारहवे भाव के स्वामी पंचमेश या नवमेश के साथ 5वे, 9वे या 11वे भाव मे बेठ जाते है तब आर्थिक लाभ ही ऐसे जातको इस छेत्र में होता है यदि दशमेश भी इस योग में शामिल हो जाता है तब शेयर बाजार में ऐसे जातक नोकरी भी करते है और शेयर की खरीदारी-बिक्री करके लाभ कमाते है।शेयर बाजार पूरी तरह आर्थिक लाभ देने वाला छेत्र है यदि जातक की कुंडली मे आर्थिक उन्नति योग शेयर बाजार में होने पर इस छेत्र में आर्थिक सफलता मिलती है।। यदि लग्न कुंडली मे शेयर बाजार में सफलता के योग न हो यकीन नवमांश कुंडली मे योग है और जो ग्रह नवमांश कुंडली मे योग बना रहे है तब उन्ही ग्रहो की महादशाएं-अन्तरदशाये चल रही हो तब भी अपार आर्थिक लाभ इस छेत्र से जातक को होगा।कुछ उदाहरण कुंडलियो से समझते है:- #उदाहरण1:- सिंह लग्न की कुंडली मे दूसरे भाव स्वामी(धनेश) और ग्यारहवें भाव स्वामी(लाभेश) बुध बनता है साथ ही पंचमेश गुरु होता है अब केवल यहाँ बुध गुरु का 5वे ग्यारहवे भाव मे संबंध साथ ही मंगल जो इस कुंडली का योगकारक होकर सफलता देने वाला ग्रह है वह भी बुध और गुरु के साथ संबंध बनाकर बेठा हो, जैसे गुरु बुध मंगल 5वे भाव मे ही हो तब ऐसा जातक शेयर बाजार के काम मे दिन दुगनी रात चौगनी जैसे आर्थिक तरक्की करेगा।। #उदाहरण2:- धनु लग्न इसमे पंचमेश मंगल होता है और धनेश शनि साथ लाभेश शुक्र बनता है यहाँ इन तीनो ग्रहो का संबंध ग्यारहवे, पाचवे या दूसरे भाव मे बने साथ ही बुध बलवान हो तब शेयर बाजार में आर्थिक लाभ, आर्थिक सफलताए बनी रहेगी।। #उदाहरण3:- कुम्भ लग्न में गुरु धनेश और लाभेश होता है बुध पंचमेश होता है ऐसी स्थिति में अब गुरु बुध का संबंध सूर्य सहित क्योंकि सूर्य यहाँ सप्तम भाव स्वामी होने से व्यापार का स्वामी होता है तब सूर्य गुरु बुध का संबंध 5वे,11वे, दूसरे या 7वे भाव मे होने पर शेयर बाजार में काफी उन्नति ऐसा व्यक्ति करेगा।। शेयर बाजार में उच्च सफलता के लिए यह योग बनाकर ग्रह धन, सफलता स्थान जैसे दूसरे 5वे, 11वे भाव मे होते है तब प्रबल सफलता और अन्य किसी केंद्र त्रिकोण में होंगे तब सामान्य तरह से आर्थिक लाभ कराते है।सूर्य बुध राहु गुरु और पंचमेश(पंचम भाव स्वामी),एकादशेश,(ग्यारहवे भाव स्वामी) और धनेश(दूसरे भाव का स्वामी) यह सब जितने ज्यादा से ज्यादा शुभ और बलवान स्थिति में होंगे उतना ही इस छेत्र में हर तरह से सफलता मिलती है,दशमेश भी यहाँ शामिल हो जाये तब कैरियर भी स्थाई रूप से यहाँ बन जाता है।। #नोट:- शेयर बाजार योग होने पर ग्यारहवा भाव जितना ज्यादा बलवान होगा आर्थिक लाभ उतनी ही ज्यादा मात्रा में होकर उन्नति होती रहती है।

|#कुंडली_के_ग्रहो_के_अनुसार_घर_की_पुताई_रंगाई| आजकल दिवाली आने के पर्व पर घरो में पुताई, रंगाई आदि का काम लगभग सभी के चल रहा है।ऐसे में घर मे जो रंग कराया जाता है वह आपकी कुंडली के अनुसार या यह कहे आपकी कुंडली शुभता देने वाले जैसे कि कारक ग्रहो, चौथे भाव मे बैठे शुभ ग्रहों या जो भी लग्न है उस लग्न के स्वामी के अनुरूप घर मे रंग, या पेंट आदि कराया जाए तो ग्रहो की शुभता का प्रभाव और जातक पर दोनो पर पड़ेगा क्योंकि रंग बहुत गहरा प्रभाव, सफलता, सुख ,शांति,सोभग्यता आदि पर डालते है रंग इंसान की ज़िंदगी मे खुशियो के सूचक है तो कुंडली का चौथा भाव जातक के घर(मकान) का होता है तो इस भाव का स्वामी जो भी ग्रह हो उस ग्रह के अनुसार या इस भाव मे कोई शुभ ग्रह बैठा हो तो उसके अनुसार या लग्न में कोई शुभ कारक ग्रह बैठा है तो उसके अनुसार या लग्न के स्वामी ग्रह के अनुसार घर मे रंग कराना ज़िन्दगी को रंगों से भरकर घर मे खुशियो का माहौल बन जायेगा क्योंकि यदि चौथे भाव से संबंधी ग्रहो का रंग घर मे कराया जाएगा तो यह अत्यधिक शुभ होगा और लग्न के स्वामी या लग्न में बैठे ग्रह ले अनुरूप रंग जैसे कि पेंट, पुताई आदि घर मे उसी ग्रह के रंग के अनुसार कराई जाने से घर मे खुशियो के साथ, धन,सफलता,शांति शुभता और सौभाग्य बढेगा क्योंकि रंग ग्रहो से संबंधित है और रंगों का प्रभाव हर जातक पर ग्रहो के अनुसार पड़ता है जैसे चौथे भाव मे गुरु शुभ और शुभ भाव पति होकर बैठे जैसे कि कुम्भ लग्न में गुरु धन और लाभ का स्वामी होता है यदि अब ऐसा गुरु चौथे भाव मे बेथ जाए तो ऐसे जातको को घर मे पिला रंग कराना धन वृद्धि, लाभ की मात्रा में वृद्धि और गुरु सुख शांति सफलता आदि का कारक होने से घर मे यह सब बढेगा।इसके विपरीत शत्रु ग्रहो या अकारक या अशुभ फल प्रदाता ग्रहो के रंग घर मे करा लिया जाए तो यह अशुभता, अशांति आड़े को घर मे बढ़ा देगा।जैसे मेष लग्न में बुध 3 और 6 भाव का स्वामी होकर अशुभ होता है और बुध हरे रंग का और हरे रंग से संबंधित रंगों का कारक है तो ऐसी स्थिति में बुध चौथे भाव मे हो तब बुध का घर मे हरा रंग कराना घर मे बीमारी, दुख, शत्रु वृद्धि, असफलता बढ़ा सकता क्योंकि बुध छठे का स्वामी होकर अशुभ है और छठे भाव का स्वामी छठे भाव मे शुभ नही ऐसी स्थिति में लग्न के स्वामी या योगकारकक, कारक या चौथे भाव या धन दायक या शुभ ग्रह का रंग घर मे पुताई के रूप में कराना शुभता और घर मे अच्छा फल ग्रहो का करेगा।। इसके अलावा किसी बलवान शुभ ग्रह की महादशा चल रही हो तब उस महादशा स्वामी ग्रह का जो रंग होता है उस रंग को घर मे कराना ऐसे महादशा नाथ ग्रह की शुभता और शुभ फल जातक के जीवन मे बढ़ेंगे जिसका प्रभाव घर पर पड़ेगा।। #नोट:- इसके अलावा घर मे शत्रु ग्रहो जैसे सफेद और नीला रंग नही कराना चाहिए क्योंकि सफेद रंग चंद्र है तो नीला रंग राहु है तो ऐसे में सफेद और नीला रंग कराना घर मे मानसिक तनाब, राहु चन्द्र का अशुभ प्रभाव बढ़ा देना क्योंकि दोनों शत्रु ग्रह है तो शत्रु ग्रहो के रंग की पुताई, पेंट आदि नही घर मे कराने चाहिए।मित्र ग्रहो के दो तरह के रंग घर मे चौथे भाव, लग्न के स्वामी ,योगकारक या कारक ग्रह के अनुसार रंग होना जातक को जीवन मे सफलता,उन्नति, शुभता,घर मर खुशियां, शांति आदि बढ़ने लगेगी।तो कुंडली अनुसार घर मे रंगाई पुताई आदि कराना भविष्य और ग्रहो के सकारात्मक फलो को प्राय किया जा सकता है।

||#संधि_में_बैठे_ग्रहो_के_फल|| जिस तरह से लग्न संधि में होता है उसी तरह से ग्रह भी संधि में आ जाते है जिनकी जांच गहराई से करने पर ही उनके सही फल निकल सकते है।। संधि में ग्रह कैसे होता है?? जब कोई भी ग्रह किसी राशि पर 0अंश 2अंश तक हो या 29 से 30 तक हो तब ऐसे ग्रह संधि में होते है मतलब दोनो भावों का प्रभाव लिए हुए होते है।अब ग्रह यदि 1अंश का है इसका अर्थ है ग्रह अभी पिछली राशि/भाव से निकलकर अगली राशि/भाव मे आया ही है और जब ग्रह 29या 30अंश पर होता है इसमें भी यदि 30अंश पर हो तब इसका अर्थ होता है ग्रह जिस राशि/भाव मे है उसे छोडकर अगले भाव/राशि मे जा रहा है हलाकि ऐसे ग्रह की चलित कुंडली मे भाव स्थिति से सही अंदाजा उसके भाव का लगाया जाता है लेकिन कभी कभी ऐसा होता है कि ग्रह 29 या 30अंश पर होने पर भी चलित कुंडली मे उसी भाव और राशि मे है जिसमे की लग्न कुंडली मे है।तब ऐसा ग्रह या ऐसे ग्रह संधि में होते है मतलब अपना प्रभाव दोनो भावो पर डालते है।ऐसे केस में 1 या 2अंश के ग्रह का फल उसी भाव राशि अनुसार होगा जिसमें वह ग्रह है क्योंकि 1 या 2अंश का ग्रह अपना पिछला भाव या राशि को छोड़ चुका है लेकिन जो ग्रह 29 या 30अंश का है और चलित में भी बिल्कुल लग्न कुंडली जैसी स्थिति में है वह जिस भाव मे है उसके भी और अगले भाव के भी फल देने चालू कर देगा मतलब मिले झूले फल देगा।जैसे कि;- शनि की साढ़ेसाती होती है शनि होता एक ही भाव राशि मे है लेकिन उसकी साढ़ेसाती का प्रभाव शनि से पिछले भाव/राशि पर भी राहत है और अगले भाव और राशि पर भी राहता है माना जातक की राशि धनु है तो शनि जब धनु राशि पर होगा तो धनु से पिछली राशि वृश्चिक पर भी साढ़ेसाती देगा और धनु से अगली राशि मकर पर भी साढ़ेसाती रहेगी और जिस जन्म राशि पर शनि है उस पर भी साढ़ेसाती धनु पर रहेगी तो शनि जहाँ बैठा है उससे आगे और पीछे भाव/राशि कर भी फल दे रहा है इस तरह से ही जो ग्रह भाव संधि में होते है वह मिलाझुला फल करते है उसमे भी जो ग्रह बहुत तेज गति से चलते है जैसे बुध चन्द्र इनका प्रभाव विशेष होता है और गुरु शनि राहु केतु यह धीमी गति से चलते है इस कारण भाव संधि में यह ग्रह होंगे तो इनका प्रभाव दोनो भावो पर आएगा। #जैसे;- जैसे कर्क लग्न कि कुंडली मे सूर्य दसवे भाव मेष राशि मे होगा जो कि सूर्य की उच्च राशि है यदि यहाँ सूर्य 29 या 30अंश का है तो सूर्य यहाँ भाव संधि में आ जायेगा मतलब सूर्य ग्यारहवे भाव पर भी अपना प्रभाव दिखा सकता है तो दसवा भाव नोकरी/कार्य छेत्र का है सूर्य सरकार का कारक है तो ऐसे में दसवे भाव मे उच्च सूर्य होने से यही दिख रहा है कि जातक की किसी अच्छे पद पर सरकारी नोकरी सूर्य के कारण लगेगी क्योंकि दसवे भाव मे सूर्य है लेकिन सूर्य भाव संधि में है 29 या 30अंश का होकर तो ऐसा सूर्य हो सकता है सरकारी नोकरी या सूर्य के कारण नोकरी न मिल सके क्योंकि सूर्य ग्यारहवे भाव के साथ भाव संधि में है और ग्यारहवे भाव मे 29 या 30अंश का होकर ग्यारहवे भाव मे जाने के लिए आतुर है तो ऐसी स्थिति में सूर्य का प्रभाव दसवे भाव पर नाम मात्र को होगा जो कि कुछ खास असर नही देगा जबकि सूर्य बैठा दिख रहा है दसवे भाव मे ही।इसी तरह यही सूर्य की स्थिति बिल्कुल 9वे भाव मे बैठने पर होती और दसवे भाव को देखने पर पता चले कि सरकारी नोकरी योग नही है लेकिन जातक को मिल जाये तो यह सूर्य के नवे भाव मे 29 या 30अंश पर बैठने से सूर्य 10वे भाव के साथ भाव संधि में आ गया है जिस कारण उसने अपना प्रभाव दसवे भाव पर दिखाया।यह स्थिति बिल्कुल ऐसे ही है जैसे शाम को आफिस की छुट्टी के समय व्यक्ति घर जाने के लिए सोचता और यह सोचने लगता है क्या कुछ घर का या घर या घर के सदस्यों के लिए लेकर तो नही जाना।जबकि जातक अभी है ऑफिस में ही।ऐसी स्थिति में एक से ज्यादा ग्रह भी भाव संधि में हो जाते है तो जो भी ग्रह भाव संधि में होगा उसका फल सटीक उस ग्रह के फल जातक को किस तरह प्रभावित कर रहे है उसी के अनुसार होंगे।भाव संधि वाले ग्रहो के रत्न पहनते समय बहुत ध्यान रखा जाता है या रखना चाहिए क्योंकि हो सकता है आपको ग्रह लग्न(प्रथम)भाव मे बैठा दिख रहा है और यही ग्रह 12वे भाव के साथ भाव संधि में है तो ऐसे ग्रह के रत्न 12वे घर के फलो पर अपना प्रभाव डालेंगे जो कि शुभ नही क्योंकि 12वा भाव खर्चे का है।इसी तरह कोई ग्रह 12वे भाव मे है और कुंडली के लिए ऐसा ग्रह योगकारक/कारक या शुभ होकर शुभ फल देने वाला है लेकिन 12वे भाव मे होकर लग्न भाव के साथ संधि में हो तब ऐसे ग्रह के 12वे भाव मे बैठने पर भी उसका रत्न पहनना शुभ हो सकता है यदि चलित कुंडली मे भी ऐसा ग्रह लग्न(प्रथम) भाव मे आ गया हो तो यह सबसे बढ़िया फल देने की स्थिति होगी तो भाव संधि में बैठे ग्रहो के फल की सटीक भविष्यवाणी उनके भाव संधि किस तरह से है पर निर्भर करते है इसी तरह कोई लग्न भाव संधि में हो तो उस लग्न कुंडली के फलो की जांच बारीकी से करने पर उसके सही फलो का पता चलता है।

एकादशेश(लाभेश) की दशा। जन्मकुंडली का ग्यारहवाँ भाव लाभ, उन्नति, वृद्धि एक तरह से हर तरह से शुभ फल देने वाला होता है लाभेश के शुभ होने पर लाभेश की दशा जीवन में धन लाभ, अन्य तरह से मिलने वाले लाभ को देती है क्योंकि यह भाव और भावेश दोनों ही लाभ सूचक है।यदि जातक व्यापार करता है तो व्यापार में शुभ और बलवान लाभेश की महादशा या अन्तर्दशा व्यापार में लाभ और वृद्धि के नए रास्ते खोल देती है क्योंकि इस भाव और भावक स्वामी का काम ही है व्यापार में या किसी भी उस चीज में लाभ देना जिस भी भाव का सम्बन्ध इस भाव या भावेश से होता है।। बलवान लग्नेश और लाभेश का सम्बन्ध जीवन को सुखी बनाने में सहयोग करता है, दूसरे भाव या भावेश का सम्बन्ध लाभेश से होने पर धन की वृद्धि करता है इसी तरह जिस भी भाव/भावेश का शुभ सम्बन्ध ग्यारहवे भाव या इस भाव के स्वामी से होता है उस भाव के शुभ फलो में वृद्धि हो जाती है और सम्बन्ध अशुभ हो तब अशुभ फल में वृद्धि होगी जैसे छठे भाव का स्वामी अशुभ स्थिति में हो तब बिघ्न-बाधाओं, कर्जा आदि की वृद्धि होगी।। इसके विपरीत सम्बन्ध शुभ होने पर शुभ फल में वृद्धि होगी।जैसे दशमेश का सम्बन्ध लाभेश(एकादशेश) से होगा तब यह नोकरी/व्यापार या जो भी कार्य छेत्र होगा उसमे उन्नति उस काम से लाभ ही देगा क्योंकि यहाँ कार्य छेत्र का सम्बन्ध लाभेश से जुड़ गया है।ग्यारहवे भाव का सम्बन्ध कुंडली में बनने वाले राजयोग से होने पर ऐसे लाभेश की दशा बहुत शुभ फल देती है क्योंकि राजयोग से सम्बन्ध बनने पर लाभेश राजयोग के शुभ फलो में वृद्धि करेगा, राजयोग का ज्यादा लाभ मिलेगा साथ ही राजयोग के शुभ फलो में वृद्धि होगी।एक तरह से यही ग्यारहवा भाव होता है जो हर स्थिति में (अशुभ न हो तब जैसे; अस्त, पीड़ित, नीच आदि) लाभ और सुखद फल देने में सक्षम होता है शुभ लाभेश की दशा किसी राजयोग से कम नही होती।लाभ के स्वामी की स्थिति नवमांश कुंडली में भी बली हो जैसे लाभेश वर्गोत्तम हो, उच्च हो गया हो आदि तरह से बली हो तब इसकी दशा दोहरा फायदा देने वाली जायेगी।व्यापारियो, नोकरी करने वाले जातक/जातिकाओ के लिए लाभेश की दशा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यही दशा होती है जो लाभ और आय में वृद्धि कराती है।वृद्धि कराने के लिए लाभेश बली जरूर होना चाहिए।शेयर मार्केट में लाभ और शेयर बाजार में सफलता के लिए लाभेश और लाभ भाव दोनों का अनुकूल होना जरूरी है ऐसी स्थिति में शेयर मार्केट योग कुंडली में होने पर लाभेश या लाभ भाव में बैठे ग्रह की दशा शेयर बाजार से लाभ कराती हैइस तरह से लाभ भाव की दशा शुभ परिणाम देने वाली एक महत्वपूर्ण दशा होती है।

भाग्येश की महादशा। भाग्येश मतलब भाग्य का स्वामी।कुंडली में नवें भाव के स्वामी को भाग्येश और नवम भाव को भाग्य कहते है।भाग्येश की महादशा या अन्तर्दशा का जीवन में आना बहुत ही शुभ और सोभाग्यशाली बात होती है क्योंकि भाग्येश की कुंडली में एक ऐसा ग्रह होता है जिसकी जानकारी हर जातक चाहता है जैसे सबसे पहला ही सामान्य प्रश्न होता मेरा या अमुक जातक का भाग्य कैसा है?. जिन भी जातको को शुभ और बली भाग्येश की दशा जीवन में मिल जाती है निश्चित ही ऐसे जातको के जीवन में सूर्य के प्रकाश की तरह जीवन में प्रकाश आ जाता है, दुर्भाग्य दूर होकर सौभाग्य की वृद्धि होने लगती है, शुभ और बली भाग्येश महादशा या अन्तर्दशा कुंडली के सभी दोषो को शांत कर जीवन में सफलता और आगे बढ़ने के रास्ते खोलती है।रोजगार, नोकरी, व्यापार, शादी होने, कोई अच्छा काम और उसमे सफलता के लिए साथ ही अन्य तरह से हर से भाग्येश की महादशा या अन्तर्दशा का जीवन में आ जाना या आना सभी तरह के शुभ कार्य जातक के जीवन में होने लगते है भाग्य का कारक गुरु होता है जिस कारक भाग्य और भाग्येश के आधे शुभ फलो की जिम्मेदारी गुरु के भाग्य भाव के कारक होने से गुरु की होती है।इसीकारण भाग्येश के साथ गुरु का भी बली होना जरूरी होता है। भाग्येश अन्य तरह से कब ज्यादस शुभ फल देता है?? भाग्य का स्वामी खुद सबसे बड़ा राजयोग देने वाला और सभी भावो के स्वामियों का एक तरह से राजा होता है कहने का मतलब है शतरंज के खेल में बजीर होता है जैसे शतरंज के खेल में बजीर के हाथ में हर बाजी होती है मतलब बजीर कोई भी चाल चल सकता है(घोड़े की चाल छोड़कर)वेसे ही भाग्य का स्वामी कुंडली लग्नेश, पंचमेश, दशमेश, धन, लाभ भावो के फल देने में भी अकेला सक्षम होता है।भाग्येश का संबंध जब इन्ही लग्नेश(लग्न के स्वामी)चतुर्थेश(चौथे भाव के स्वामी), पंचमेश(पंचम भाव के स्वामी), सप्तमेश(सप्तम भाव के स्वामी), दशमेश(दध्मः भाव के स्वामी), धनेश(दूसरे भाव के स्वामी), लाभेश(ग्यारहवे भाव के स्वामी) के साथ हो जाने से बहुत शक्तिशाली और शुभ फल भाग्येश की दशा देती है सफलता, नाम, कारोबार/नोकरी में उन्नति-सफलता, सुख-सौभाग्य की वृद्धि होती है जिसे कहते है किस्मत जातक की दासी है।। इसके विपरीत स्थिति में अगर भाग्येश कमजोर होता है, नीच राशि में होता है, पीड़ित होता है, अशुभ योग बनाए होता है या अस्त होता है तब भाग्येश की दशा अशुभ फल, जैसे असफलताएँ, सौभाग्य दुर्भाग्य में बदल जाना, भाग्य का साथ न मिलना आदि जैसे अशुभ फल मिलते है।। #उदाहरण_अनुसार:- वृश्चिक लग्न की कुंडली में चंद्रमा भाग्येश(नवे भाव का स्वामी)होता है।जब बलवान और शुभ चंद्रमा की दशा-अन्तर्दशा वृश्चिक लग्न के जातको पर आएगी तब जातक को कई तरह के शुभ फल मिलने लगेंगे जैसे जातक पढाई कर रहा हो तब उसमे अच्छी सफलता, नोकरी के लिए प्रयास कर रहा हो तब उसमे सफलता नोकरी लग जाना, व्यापार में हो तब व्यापारिक सफलता, मतलब जातक जिन कार्यो को पूरा करना चाहता है वह भाग्येश की दशा करा देती है साथ ही भाग्येश जिन भी शुभ भाव पतियो जैसे केन्द्र्(1,4,7,10) त्रिकोण(5,9)(2,11)भावेश या भाव का भाग्येश से सम्बन्ध होने से इन भावो के भी शुभ फल मिलते है।शुभ और बली भाग्येश की महादशा-अन्तर्दशा जीवन को अच्छा बनाकर जातक के लिए सभी तरह से शुभ होती है।। भाग्येश का विचार नवमांश कुंडली में जरूरी होता है क्योंकि भाग्य की विशेष वर्ग कुण्डलु नवमांश कुंडली है भाग्येश की स्थिति लग्न कुंडली के साथ नवमांश कुंडली में भी बली होना जैसे भाग्येश वर्गोत्तम हो(लग्न और नवमांश कुंडली में एक ही राशि में) अपनी उच्च राशि या स्वराशि में हो, नवमांश कुंडली में शुभ योग बनाता हो तब दोहरे(डबल)शुभ फल भाग्येश की दशा देती है।इस तरह से भाग्येश की महादशा या अन्तर्दशा बेहद जातक/जातिकाओ के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती है।