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विवाह देर से होने के कारण। आजकल विवाह देर से होना या यह कहूँ समय से न हो पाना, शादी होने में बिघ्न-बाधाए रहना।यह एक बड़ी दिक्कत है।जातक/जातिका की कुंडली में ही कुछ ऐसे विवाह से सम्बंधित योग और ग्रह स्थितियां होती है जो शादी देर से कराने, बिघ्न बाधाओ के बाद कराने के लिए जिम्मेदार होती है कभी-कभी ऐसा भी होता की विवाह हो ही नही पाता ओर उम्र निकल जाती है।। जन्मकुंडली का सप्तम भाव और इसका स्वामी साथ ही विवाह कारक लड़के के लिए शुक्र और लड़की के लिए गुरु।यह सब विवाह न होने या होने के लिए जिम्मेदार होते है।जब सप्तम भाव और इसका स्वामी नीच राशि में हो, नीच राशि में जाकर पीड़ित हो गया हो, छठे या आठवे भाव के स्वामी से सम्बन्ध बनाकर पाप ग्रहो से युक्त या द्रष्ट हो तब शादी होने में और रिश्ता मिलने में दिक्कते आती है।सप्तम भाव में कम से कम दो पाप ग्रह हो और शुभ ग्रह शुक्र गुरु बुध पूर्ण बली चन्द्र सप्तम भाव या सप्तमेश से सम्बन्ध न बनाये तब विवाह होता ही नही है यदि हो भी जाता है तो आगे का जीवन कोर्ट-कचहरी और तलाक के लिए होता है ऐसे विवाह का कोई अच्छा भविष्य नही होता।सप्तम भाव और सप्तमेश जितना ज्यादा पाप या 6,8 भाव या भावेश से पीड़ित होगा, अस्त होकर पाप ग्रहो से युक्त होगा उसी के अनुसार वैवाहिक जीवन में दिक्कते रहती है।कुछ स्थितियां ऐसी होती है कि दिक्कतो के बाद भी शादी चलती रहती है लेकिन ऐसा विवाह सिर्फ नाम मात्र होता है कोई पति को पत्नी या पत्नी को पति का आपसी सहयोग, प्यार नही मिलता।। यदि सप्तमेश कमजोर होकर कम से कम एक पाप या क्रूर ग्रह के प्रभाव में है साथ ही सप्तमेश या सप्तम भाव पर शुभ ग्रहो गुरु शुक्र बुध चन्द्र इन ग्रहो का प्रभाव होता है तब शादी बिघ्न-बाधाओ और देर से होती है सामान्य वैवाहिक जीवन शुभ ग्रहो के प्रभाव से ठीक रहता है।शादी में देर होना या बिघ्न-बाधाओ का आने का मुख्य कारण है सप्तमेश और सप्तम भाव का अशुभ स्थिति में होना, पीड़ित होना, अस्त आदि होना होता है।ऐसी स्थिति में जो भी ग्रह सप्तम भाव या भावेश को पीड़ित कर रहे हो, कमजोर बना रहे हो तो उनकी शांति करा देनी चाहिए, सप्तमेश खुद अस्त, नीच शत्रु राशि आदि तरह से कमजोर या अशुभ हो तब सप्तमेश को बल देना चाहिए साथ ही शुक्र गुरु को भी बली करना विवाह के लिए प्लस(+) बिंदु होता है।। लग्न कुंडली में विवाह होने में दिक्कते, समस्या, देर होने की स्थिति होने पर नवमांश कुंडली की जाँच जरूरी होती है यदि नवमांश कुंडली में विवाह के दमदार और शुभ योग है तब सही समय पर बिना बिघ्न-बाधाओ के सही समय पर शादी हो जाती है और ठीक रहती है।लग्न कुंडली के बाद नवमांश कुंडली शादी के लिए आखरी निर्णय करती है कि विवाह और वैवाहिक जीवन का समय कब है?, कितना है?, कैसा रहेगा? आदि।। #उदाहरण_अनुसार:- मेष लग्न की कुंडली में सप्तम भाव जिसका स्वामी शुक्र है और पुरुष विवाह के लिए कारक भी शुक्र है यदि यहाँ शुक्र शनि राहु केतु से युक्त हो जाए तब शादी होने में दिक्कते आएगी यदि ऐसे पाप ग्रहो से युक्त सप्तमेश शुक्र पर गुरु चन्द्र जो मेष लग्न में शुभ ग्रह है का प्रभाव न हो तब विवाह भी नही होगा या हो भी गया तब 2 से 3महीने चलकर तलाक़ में बदल जाएगा।इस तरह से शादी में दिक्कते, ठीक न चलना, देर होना, तलाक आदि यह सब जातक/जातिका की कुंडली में ही होता है।
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