Posts
Showing posts from March, 2019
विवाह देर से होने के कारण। आजकल विवाह देर से होना या यह कहूँ समय से न हो पाना, शादी होने में बिघ्न-बाधाए रहना।यह एक बड़ी दिक्कत है।जातक/जातिका की कुंडली में ही कुछ ऐसे विवाह से सम्बंधित योग और ग्रह स्थितियां होती है जो शादी देर से कराने, बिघ्न बाधाओ के बाद कराने के लिए जिम्मेदार होती है कभी-कभी ऐसा भी होता की विवाह हो ही नही पाता ओर उम्र निकल जाती है।। जन्मकुंडली का सप्तम भाव और इसका स्वामी साथ ही विवाह कारक लड़के के लिए शुक्र और लड़की के लिए गुरु।यह सब विवाह न होने या होने के लिए जिम्मेदार होते है।जब सप्तम भाव और इसका स्वामी नीच राशि में हो, नीच राशि में जाकर पीड़ित हो गया हो, छठे या आठवे भाव के स्वामी से सम्बन्ध बनाकर पाप ग्रहो से युक्त या द्रष्ट हो तब शादी होने में और रिश्ता मिलने में दिक्कते आती है।सप्तम भाव में कम से कम दो पाप ग्रह हो और शुभ ग्रह शुक्र गुरु बुध पूर्ण बली चन्द्र सप्तम भाव या सप्तमेश से सम्बन्ध न बनाये तब विवाह होता ही नही है यदि हो भी जाता है तो आगे का जीवन कोर्ट-कचहरी और तलाक के लिए होता है ऐसे विवाह का कोई अच्छा भविष्य नही होता।सप्तम भाव और सप्तमेश जितना ज्यादा पाप या 6,8 भाव या भावेश से पीड़ित होगा, अस्त होकर पाप ग्रहो से युक्त होगा उसी के अनुसार वैवाहिक जीवन में दिक्कते रहती है।कुछ स्थितियां ऐसी होती है कि दिक्कतो के बाद भी शादी चलती रहती है लेकिन ऐसा विवाह सिर्फ नाम मात्र होता है कोई पति को पत्नी या पत्नी को पति का आपसी सहयोग, प्यार नही मिलता।। यदि सप्तमेश कमजोर होकर कम से कम एक पाप या क्रूर ग्रह के प्रभाव में है साथ ही सप्तमेश या सप्तम भाव पर शुभ ग्रहो गुरु शुक्र बुध चन्द्र इन ग्रहो का प्रभाव होता है तब शादी बिघ्न-बाधाओ और देर से होती है सामान्य वैवाहिक जीवन शुभ ग्रहो के प्रभाव से ठीक रहता है।शादी में देर होना या बिघ्न-बाधाओ का आने का मुख्य कारण है सप्तमेश और सप्तम भाव का अशुभ स्थिति में होना, पीड़ित होना, अस्त आदि होना होता है।ऐसी स्थिति में जो भी ग्रह सप्तम भाव या भावेश को पीड़ित कर रहे हो, कमजोर बना रहे हो तो उनकी शांति करा देनी चाहिए, सप्तमेश खुद अस्त, नीच शत्रु राशि आदि तरह से कमजोर या अशुभ हो तब सप्तमेश को बल देना चाहिए साथ ही शुक्र गुरु को भी बली करना विवाह के लिए प्लस(+) बिंदु होता है।। लग्न कुंडली में विवाह होने में दिक्कते, समस्या, देर होने की स्थिति होने पर नवमांश कुंडली की जाँच जरूरी होती है यदि नवमांश कुंडली में विवाह के दमदार और शुभ योग है तब सही समय पर बिना बिघ्न-बाधाओ के सही समय पर शादी हो जाती है और ठीक रहती है।लग्न कुंडली के बाद नवमांश कुंडली शादी के लिए आखरी निर्णय करती है कि विवाह और वैवाहिक जीवन का समय कब है?, कितना है?, कैसा रहेगा? आदि।। #उदाहरण_अनुसार:- मेष लग्न की कुंडली में सप्तम भाव जिसका स्वामी शुक्र है और पुरुष विवाह के लिए कारक भी शुक्र है यदि यहाँ शुक्र शनि राहु केतु से युक्त हो जाए तब शादी होने में दिक्कते आएगी यदि ऐसे पाप ग्रहो से युक्त सप्तमेश शुक्र पर गुरु चन्द्र जो मेष लग्न में शुभ ग्रह है का प्रभाव न हो तब विवाह भी नही होगा या हो भी गया तब 2 से 3महीने चलकर तलाक़ में बदल जाएगा।इस तरह से शादी में दिक्कते, ठीक न चलना, देर होना, तलाक आदि यह सब जातक/जातिका की कुंडली में ही होता है।
- Get link
- X
- Other Apps
|#लग्न_कुंडली_के_साथ_जरूरी_है_वर्ग_कुंडली| लग्नकुंडली या जन्मलग्न कुंडली से जीवन के हर एक पहलु का विचार किया जाता है।जिसका विचार कुंडली के 12भावो से होता है लेकिन जब भी किसी भी फल का विचार करना हो तब उस फल से सम्बंधित वर्ग कुंडली की जाँच जरूर करनी या करानी चाहिए क्योंकि लग्न कुंडली मुख्य कुंडली (head office) है लेकिन इसके हर एक भाव की शाखा(branch) अलग-अलग होती है।जैसे भारत में सभी राज्यो का कण्ट्रोल या राजधानी दिल्ली है यही से 75% कण्ट्रोल होता है लेकिन सभी राज्यो का अपना अलग अस्तित्व है और उनका संचालक मुख्य रूप से राज्य का मुख्यमन्त्री होता है वेसे ही जन्मकुंडली 12भावो के रूप में एक गठ है सभी वर्ग कुंडलियो का।सभी बारहवा भावो के पूर्ण और विस्तार से फल जांच के लिए वर्ग कुंडली महत्वपूर्ण होती है।। #जैसे:- जन्मकुंडली के सप्तम भाव की स्थिति से विवाह और वैवाहिक जीवन का विचार किया जाता है लेकिन इसकी मुख्य शाखा नवमांश कुंडली है यही से जन्मकुंडली के सप्तम भाव की पूरी तरह से गहराई से जानकारी मिलेगी।कहने का मतलब है आपकी जन्मकुंडली में आपका पूरा जीवन है लेकिन जीवन में पूरी तरह से क्या मिलना है,क्या नही मिलना? आदि इसकी। गहराई से जाँच लग्न कुंडली की वर्ग कुंडलियो से जरूर करनी चाहिए।। #एक_उदारहण_अनुसार:- जमीन-जायदाद सुख है या नही कब होगा? आदि इसके लिए जन्मकुंडली के चोथे भाव के स्वामी के साथ चतुर्थांश कुंडली के का अध्ययन करने या कराने से जमीन-जायदाद(property)की पूरी तरह से जानकारी मिलेगी कि जातक के जीवन में जमीन-जायदाद का सुख कितना है, कितना नही आदि।इस तरह जनकुण्डली के साथ वर्गकुण्डली का अध्ययन सही फल जाँच के लिए महत्वपूर्ण है।।
- Get link
- X
- Other Apps
|#अस्त_ग्रह_कब_शुभ_फल_दे_सकता_है|? अस्त ग्रह नाम से ही स्पष्ट है जो छुप गया हो।जब कोई ग्रह अंशो में सूर्य के बहुत नजदीक आ जाता है तब वह अस्त हो जाता है और अस्त ग्रह अपने शुभ फल देने में सक्षम नही होता साथ ही जातक को दिक्कत परेशानिया देता है क्योंकि अस्त ग्रह अपने शुभ फल देने की क्षमता को खो देता है लेकिन ग्रह अस्त होने के बाद भी अनुकूल और शुभ फल दे सकता है शुभ और अनुकूल होने पर।क्योंकि कभी भी ग्रह की फल देने की स्थिति लग्न कुंडली से नही आकि जाती है।जो भी ग्रह कुंडली में अस्त होता है यदि वह नवमांश कुंडली में सूर्य से 3भाव या 3भाव से ज्यादा दूर है तब अस्त होने पर भी कोई अस्त होने का अशुभ फल नही देगा क्योंकि ऐसी स्थिति में ग्रह को अस्त दोष नही लगता।सबसे ज्यादा बढ़िया तब होता है जब यह स्थिति हो जिस भी भाव का स्वामी अस्त हुआ है उस भाव का स्वामी अपने भाव से सम्बंधित वर्ग कुंडली में सूर्य से काफी दूर हो कम से कम 3भाव दूर या इससे ज्यादा दूर हो यदि ऐसी स्थिति अस्त ग्रह की बनती है तब वह कोई अशुभ फल नही देगा।। #उदाहरण_अनुसार:- जन्मकुंडली में दशम भाव का स्वामी अस्त हो गया हो तो यह अपने अस्त होने की स्थिति अनुसार नकारात्मक फल में वृद्धि करेगा लेकिन दशम भाव की वर्ग कुंडली जो की #दशमांश_कुंडली है यदि इस दशमांश में दशमेश सूर्य से काफी दूर है है लगभग 3भाव या इससे ज्यादा दूर है तब दशमेश को अस्त दोष नही लगेगा।। #मेष_लग्न की कुंडली में दशमेश शनि होता है यदि यह अस्त हो गया हो लेकिन यही शनि इस मेष लग्न की दशमांश कुंडली में सूर्य से लगभग 4भाव या इससे ज्यादा भाव की दुरी पर हो तब यह लग्न कुंडली मजे दशमेश होने के अनुकूल फल देगा क्योंकि भाव का स्वामी अपने भाव संबंधी वर्ग कुंडली में अस्त होने से बच रहा है।इस तरह से लग्न कुंडली में दिखने वाला अस्त ग्रह भी यदि अपने भाव से सम्बंधित वर्ग कुंडली में सूर्य से लगभग 4 भाव या इससे ज्यादा की दूरी पर है तो वह अपने अनुकूल फल देने में सक्षम होगा और शुभ फल देगा। नोट-ऐसा ग्रह किसी तरह के अशुभ योग या पीड़ित नही होना चाहिए।
- Get link
- X
- Other Apps
||#महादशानाथ_ग्रह_और_गोचर|| कुंडली में जिस भी ग्रह की महादशा या अन्तर्दशा चल रही होती है उस ग्रह का पूरी तरह से जीवन पर शुभ अशुभ प्रभाव उस समय पड़ रहा होता है जिस समय दशा चल रही होती है।जिस भी ग्रह की महादशा या अन्तर्दशस् होती है उस ग्रह की गोचर में क्या स्थिति है?? यह बात सबसे महत्वपूर्ण होती है ग्रह के फल देने में क्योंकि गोचर ग्रह की वर्तमान स्थिति बताती है कि उसकी स्थिति क्या और कैसी है। जैसे:- मेष लग्न की कुंडली में भाग्येश गुरु की महादशा चल रही हो गुरु की महादशा 16 साल की होती है और गुरु आपकी कुंडली में शुभ होकर बैठा है तो उसके फल भाग्येश और बली होने के कारण शुभ मिलेंगे लेकिन यदि वह वर्तमान गोचर में अस्त है पाप ग्रहो के प्रभाव में हो तब ऐसे शुभ फल देने वाले भाग्येश गुरु की महादशा उतने समय तक शुभ नही जायेगी या शुभ फल नही देगी जब तक की गुरु में अनुकूल और शुभ न हो जाए या पाप ग्रहो के प्रभाव में हो तो उनसे मुक्त न हो जाए और अस्त हो गया हो तो जब तक उदय न हो जाय आदि क्योंकि ग्रह वर्तमान समय में सही स्थिति में नही है लेकिन जातक के जन्म के समय ग्रह की स्थिति उत्तम थी जिस कारण से उसके फल भी उत्तम होंगे स्वाभाविक बात है। #एक_अन्य_उदाहरण_अनुसार:- वृष लग्न की कुंडली में भाग्येश और कर्मेश शनि होने से वृष लग्न के लिए अति महत्वपूर्ण ग्रह होता है शनि यदि बली और शुभ स्थिति में जन्मकुंडली में बैठा है तो निश्चित ही फल शुभ मिलेंगे लेकिन जिस समय वृष लग्न के जातक पर शनि की महादशा या अन्तर्दशा आ जाए और उस समय शनि कुछ समय तक या जितने भी समय तक अस्त, पीड़ित या अशुभ प्रभाव में रहेगा तब तक ऐसे शनि की दशा शुभ होने पर भी शुभ फल नही देगी इसके विपरीत शनि की महादशा या अन्तर्दशा आ जाए उस समय शनि का गोचर भी जातक के लिए शुभ चल रहा हो या हो तब सोने पर सुहागा जैसे शुभ फल मिलेंगे इस कारण जब #दशा_गोचर दोनों शुभ होते है तब ग्रह की महादशा या अन्तर्दशा बेहद शुभ परिणाम देगी और गोचर अशुभ होने पर दशानाथ ग्रह भी शुभ होने पर शुभ परिणाम नही दे पाता है।देखा होता जातक के जीवन में सब कुछ सही चल रहा होता लेकिन 5 से 6 महीने समय ऐसा होता कि कष्टकारी जाता है जबकि महादशा अन्तर्दशा नाथ शुभ होता इसका कारण होता है गोचर में दशा नाथ ग्रह का अशुभ हो जाना।इस तरह से गोचर और ग्रह दशा दोनों के आधार पर पूरी तरह से फल फलित होते है।
- Get link
- X
- Other Apps
||#व्यापार_में_सफलता_और_उन्नति|| जातक व्यापार में सफल होगा या नही, उन्नति मिलेगी या नही, व्यापार में भविष्य है या किसी अन्य छेत्र में यह सब निर्भर करता है जातक की कुंडली में।व्यापार एक ऐसा छेत्र है जहाँ धन बहुत अच्छी मात्रा में कमाया जा सकता है तो नोकरी एक ऐसा छेत्र है जिसमे निश्चित आय आती है।। व्यापार या व्यवसाय में भविष्य होने के लिए सबसे पहले महत्वपूर्ण है व्यापार सम्बन्धी भाव,भावेश और ग्रहो का बली होकर आपस में सम्बन्ध बनाना जिसमे दशमेश-दशम भाव(कार्य छेत्र, व्यवसाय,नोकरी का है), सप्तमेश-सप्तम भाव(व्यापार का भाव है)द्वितीयेश-दूसरे भाव (धन का भाव है जो की व्यापार में महत्वपूर्ण है)इसके आलावा लाभेश-लाभ भाव(ग्यारहवे भाव का स्वामी+ग्यारहवा भाव) ग्रहो में बुध जो कि व्यापार का मुख्य कारक है+सूर्य गुरु शनि इन चार ग्रहो का मुख्य रूप से बली और व्यापार से सम्बन्ध होना साथ ही ऊपर लिखे भावो के स्वामियों का आपस में सम्बन्ध होना जरूरी है जो व्यापार में अच्छी सफलता देते है और जातक एक अच्छा और सफल व्यवसायी(businessman) बन जाता है।यहां व्यापार में दशमेश सप्तमेश द्वितीयेश लाभेश इनका आपस में सम्बन्ध होना इस कारण से जरूरी है क्योंकि दशम भाव या इसका स्वामी खुद कार्य छेत्र है जो भी कार्य जातक करता है,सप्तम भाव व्यापार है, दूसरा भाव भावेश धन का है जो व्यापार में लगाने और कमाने के लिए जरूरी है साथ ही ग्यारहवा भाव और भावेश यह व्यापार में हर तरह के लाभ और आय कितनी ज्यादा से ज्यादा मात्रा में होगी और व्यापार उन्नति करेगा यह इस भाव और भावेश के स्वामी पर निर्भर करता है इस कारण से इन सभी भावेशों का आपसी सम्बन्ध+सूर्य गुरु शनि और बुध का बलवान महवत्पूर्ण रूप से बलवान होना व्यापार में बहुत बढ़िया सफलता और अच्छा भविष्य बनता है।जितने ज्यादा राजयोग कुंडली में बनेंगे उतने ही आसान कामयाबी के रास्ते व्यापार में मिलते चले जाते है क्योंकि राजयोग धन, नाम, इज्जत सामाजिक रूप से अच्छा स्तर,सफलता आदि देता है।। #उदाहरण_अनुसार:- कुम्भ लग्न कुंडली में लग्नेश शनि बनता है साथ ही व्यापार में सहायक भावो में यहां दूसरेभाव(धन) और ग्यारहवे भाव(लाभ) का स्वामी खुद गुरु होता है, सप्तम भाव व्यापार का स्वामी सूर्य होता है, दशमेश मंगल बनता है ऐसी स्थिति में इन सभी गुरु सूर्य शनि के बीच सम्बन्ध साथ ही बुध शुक्र का भी सम्बन्ध बन जाने से जातक पक्का और बड़े स्तर का व्यवसायी(businessman)बनेगा क्योंकि यह सब ग्रह योग आपस में मिलकर व्यापार योग बनाकर जातक को सफल बनाएंगे।। इस तरह से उपरोक्त उदाहरण अनुसार और व्यापार में सफलता के ग्रह योगो के होने से व्यापार के छेत्र में सफलता मिलती है।नोकरी के छेत्र में इन्हें सफलता नही मिलती।
- Get link
- X
- Other Apps
कई छेत्रों में सफलता। कुंडली में ऐसे योग होते है जो जातक को कई छेत्रों में सफलता दे जाते है जैसे कई लोग कला के छेत्र में होते है जैसे फ़िल्म, टीवी सीरियल, गायक भी होते है आदि राजनीती आदि में भी सफल हो जाते है या व्यवसाय करने पर कई तरह के व्यवसाय करते है और कई छेत्रों में सफल होते है जिसे कहते किस्मत ऐसे व्यक्तियो की दासी है।। जो लोग जीवन में कई छेत्रों में सफलता को पाते है उनकी कुण्डलों में लग्नेश सहित नवमेश और दशमेश पंचमेश की स्थिति बहुत बढ़िया होती है और यह सभी भावेश आपस सम्बन्ध बनाए होते है जिसे राजयोग बोलते है क्योंकि राजयोग एक ऐसा योग है जो जातक को सफल बनाता ही है जब तक कुंडली में राजयोग न हो बहुत बढ़िया सफलता नही मिल सकती।दशमेश(कार्यछेत्र) नवमेश पंचमेश सप्तमेश लाभेश आदि सफलता देने वाले भावेशों के बली होने से जातक को अच्छी नोकरी या सामान्य अच्छा व्यवसाय मिल जाता है जिससे जातक अपना जीवन आर्थिक और भौतिक रूप से सुख से व्ययतीत कर सकता है लेकिन जब नवमेश(नवे भाव का स्वामी) दशमेश(दसवे भाव का स्वामी) पंचमेश(पाँचवे भाव का स्वामी)लाभेश(ग्यारहवे भाव का स्वामी) धनेश(दूसरे भाव का स्वामी)+लग्नेश(लग्न का स्वामी) जब यही 3 से 4 या ज्यादा भावेश आपस में सम्बन्ध बनाते है विशेष रूप से नवमेश दशमेश का सम्बन्ध सफलताओ के लिए होना जरूरी है क्योंकि दशमेश कार्य छेत्र है और नवमेश भाग्य है जब इस तरह के योग और सम्बन्ध बनते है जब किस्मत जातक की दासी होती है और ऐसे जातक जीवन में नाम, इज्जत, कई छेत्रो में व्यवसायी और अन्य तरह से सफल रहता है।। #उदाहरण_अनुसार:- कन्या लग्न की कुंडली में लग्नेश दशमेश बुध, भाग्येश धनेश शुक्र, सप्तमेश चतुर्थेश गुरु, और पंचमेश होकर शनि का इन ग्रहो के बीच आपसी शुभ और बली केंद्र त्रिकोण भाव में सम्बन्ध जातक को कई छेत्रों में सफलता निश्चित रूप से देगा क्योंकि यह एक दमदार राजयोग होगा इस तरह जीवन में जो कई छेत्रो में सफलताएं मिलती है वह निर्भर करती है कुंडली में बनने वाले राजयोग और ग्रहो के आपसी सम्बन्ध इसलिए ग्रहो के बीच शुभ सम्बन्ध ऐसी सफलताएं देता है।
- Get link
- X
- Other Apps